लाल मुर्गी की कहानी | Lal Murgi Ki Kahani |
लाल मुर्गी की कहानी | Lal Murgi Ki Kahani
एक लाल मुर्गी एक बाड़े में रहती थी। लाल मुर्गी अपना लगभग सारा समय बाड़े के चारों ओर घूम कर कीड़े पकड़ने में लगाती थी ।
लाल मुर्गी को कीड़े बहुत स्वादिष्ट लगते थे और वो कीड़ो से बहुत प्यार करती थी और लाल मुर्गी को लगता था की उसके बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कीड़े बहुत जरूरी हैं। लाल मुर्गी को जितनी बार कीड़ा मिलता, वह अपने चूजों को को बुलाकर उन्हें कीड़े खिलाती थी ।
बकरी, बिल्ली, चूहा और लाल मुर्गी की कहानी
उसी बाड़े में एक बिल्ली, एक बकरी और एक चूहा रहते थे, बिल्ली बहुत ही आलसी थी, बिल्ली दिन भर बाड़े के दरवाजे में आलस्य से झपकी लेती रहती थी है, यहां तक कि चूहे जब उसको परेशान करते तो भी वह अपने आलस के कारण उनके पीछे भी नहीं जाती थी ।
खुद को परेशान करने के लिए इधर-उधर भागे चूहे को डराने के लिए खुद को परेशान नहीं करती है।
चूहे और बकरी भी बहुत ही आलसी थे और उनके पास भी दिनभर खाना खाने और पेट फुलाकर पड़े रहने के अलावा कोई काम नहीं था। यंहा तक के उनके मालिक को खाना भी उनके मुंह के आगे रखना पड़ता था ।
एक दिन लाल मुर्गी को एक बीज मिला। यह एक गेहूं का बीज था, लेकिन लाल मुर्गी कीड़ों की इतनी आदी थी कि उसे लगा कि यह कुछ नया और शायद बहुत स्वादिष्ट प्रकार का मांस है। उसने उसे धीरे से काटा और पाया कि यह स्वाद में एक कीड़े जैसा नहीं था।
लाल मुर्गी ने इसे लेकर काफी पूछताछ की, कि यह क्या हो सकता है। अंततः उसने पाया कि यह एक गेहूँ का बीज है और यदि इसे बोया जाए तो यह बड़ा हो जाता है और जब यह पक जाता है तो इसे आटा और फिर रोटी बनाई जा सकती है।
लाल मुर्गी गेंहू के बीज को उगाना चाहती थी लेकिन उसके पास अपने खूब सारे बच्चो को कीड़े पकड़कर खिलाने के अतिरिक्त समय नहीं था।
इसलिए लाल मुर्गी ने सोचा की बकरी बिल्ली और चूहा कोई काम नहीं करते है उनके पास खूब सारा समय है इसलिए लाल मुर्गी ने जोर से पुकारा ।
"बीज कौन लगाएगा ?"
लेकिन बकरी ने कहा, "मैं नहीं," और बिल्ली ने कहा, "मैं नहीं," और चूहे ने कहा, "मैं नहीं।"
"ठीक है, तो," लाल मुर्गी ने कहा, "मैं बीज लगाउंगी ।"
और लाल मुर्गी ने बीज बो दिया ।
फिर वह लंबे गर्मी के दिनों में अपने दैनिक कर्तव्यों को करने लगी, और अपने चूजों को खिलाने के लिए कीड़े खोजने लगी, जबकि बकरी, बिल्ली और चूहा खा खाकर मोटे हो गये, और समय के साथ साथ गेहूं उग कर बड़ा पौधा बन गया और फसल के लिए तैयार हो गया।
एक दिन लाल मुर्गी ने देखा कि गेहूं कितना बड़ा था और अनाज पका हुआ था, इसलिए वह तेजी से पुकारने के लिए दौड़ी: "गेहूं कौन काटेगा?"
बकरी ने कहा, "मैं नहीं," बिल्ली ने कहा, "मैं नहीं," और चूहे ने कहा, "मैं नहीं।"
"ठीक है, तो," लाल मुर्गी ने कहा, "मैं ही काटूँगी।"
और लाल मुर्गी ने खलिहान में किसान के औजारों में से दरांती निकाली और गेहूं के बड़े पौधे को काटने के लिए आगे बढ़ी और गेंहू काट लिया ।
लाल मुर्गी के बच्चे बहुत परेशान थे क्योंकि उनकी माँ उनके लिए कीड़े नहीं पकड रही थी और ना ही लाल मुर्गी के पास उनके लिए समय था ।
बकरी, बिल्ली, चूहा और लाल मुर्गी की कहानी
बेचारी लाल मुर्गी ! वह काफी परेशान थी और महसूस कर रही थी की उसका ध्यान अपने बच्चों के प्रति उसके कर्तव्य और गेहूँ के प्रति उसके कर्तव्य के बीच विभाजित था।
फिर लाल मुर्गी ने सोचा की अब तो गेंहू कट चूका है इसकी कुटाई कर आता तो अब कोई भी बना लेगा और उसने पूरी आशा के साथ आवाज लगाई की, "गेहूं को कौन कूटेगा?"
लेकिन बकरी ने कहा, "मैं नहीं," और बिल्ली ने म्याऊ के साथ कहा, "मैं नहीं," और चूहे ने चीख़ के साथ कहा, "मैं नहीं।"
लाल मुर्गी ने निराश होकर कहा, "ठीक है, मैं ही गेंहू कुटुगी।"
लाल मुर्गी ने पहले अपने बच्चों को खाना खिलाया और जब उसने उन सभी को दोपहर की झपकी के लिए सुलाया तो वह बाहर गई और गेहूं की कुटाई की। फिर उसने पुकार कर कहा, "गेहूं को चक्की में पीसने के लिये कौन ले जाएगा?"
बकरी ने कहा, "मैं नहीं," और उस बिल्ली ने कहा, "मैं नहीं," और उस चूहे ने कहा, "मैं नहीं।"
लाल मुर्गी कुछ नहीं कर सकती थी उसने कहा ठीक है "मैं ही इस चक्की पर पिसने के लिए ले जांउगी।"
वह गेहूँ की बोरी उठाकर दूर की चक्की में चली गई। वहाँ उसने गेहूँ को सुंदर सफेद आटे में पिसने के लिए कहा। जब चक्की वाला उसके लिए आटा लेकर आया तो वह आटे को लेकर धीरे-धीरे अपने बाड़े में वापस आ गई।
लाल मुर्गी बहुत थक चुकी थी लेकिन फिर भी उसने पहले अपने बच्चों के लिए कीड़े पकडे और उन्हें कीड़े खिलाकर थोड़ी देर सो गयी ।
जैसे ही उसकी नींद से आँख खुली, उसके मन में यह विचार आया कि आज गेहूँ के आटे से किसी तरह रोटी बना लेनी चाहिए।
बकरी, बिल्ली, चूहा और लाल मुर्गी की कहानी
लेकिन उसने सोचा की उसे रोटी तो बनानी नहीं आती है इसलिए लाल मुर्गी जोर से चिल्लाई और पुकारा, "रोटी कौन बनाएगा?"
लाल मुर्गी की एक बार फिर उम्मीदें धराशायी हो गईं! बकरी ने कहा, "मैं नहीं," बिल्ली ने कहा, "मैं नहीं," और चूहे ने कहा, "मैं नहीं।"
तो लाल मुर्गी ने एक बार फिर कहा, "फिर मैं ही रोटी बनाउंगी,"।
लाल मुर्गी ने सोचा के उसे कोशिश करनी चाहिए तो उसने आटा गूंथ लिया, रोटी बेली, और रोटियों को सेंकने के लिए ओवन में रख दिया। उस समय बकरी, बिल्ली और चूहा आलसी होकर बैठी रहे और लाल मुर्गी पर हँसते रहे।
अब रोटियां बन चुकी थी रोटियों की खुशबु हवा में आ रही थी । लाल मुर्गी नहीं जानती थी कि रोटी खाने लायक होगी या नहीं लेकिन जब छोटी छोटी प्यारी भूरी रोटियां ओवन से निकलीं तो वह बहुत खुश थी ।
रोटियों की खुशबु पुरे बाड़े में फेल रही थी बकरी बिल्ली और चूहे को भी रोटी की खुशबु आ रही थी और अब उनका मन रोटी को खाने का हो रहा था ।
फिर, शायद इसलिए कि उसे आदत हो गई थी, लाल मुर्गी ने पुकारा: "रोटी कौन खाएगा?"
बाड़े के सभी जानवर लाल मुर्गी को देख रहे थे और उनके मुंह में पानी आ रहा था और बकरी ने कहा, "मैं खाऊँगी," बिल्ली ने कहा, "मैं खाऊँगी," चूहे ने कहा, "मैं खाऊँगा।"
लेकिन छोटी लाल मुर्गी ने कहा,
"नहीं, आप नहीं खाओगे । मैं खाऊँगी ।"
और लाल मुर्गी और उसके बच्चो ने मिलकर रोटी को बड़े मजे से खाया, बकरी बिल्ली और चूहा सोच रहे थे की काश उन्होंने मुर्गी की मदद की होती तो उन्हें भी मजेदार स्वादिष्ट रोटी खाने को मिलती ।
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