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दो तोते की कहानी |
दो तोते की कहानी
यह शॉर्ट स्टोरी अच्छी संगत और बुरी संगत के सभी लोगों के लिए काफी दिलचस्प है। आनंद लें इस कहानी को पढ़कर।
एक बरगद के पेड़ पर दो तोतों
ने अपना घोंसला बनाया था। मादा तोते ने घोंसले में दो अंडे दिए। कुछ समय बाद, अंडे तैयार होने लगे।
उनमें से दो चूजे निकले। माता-पिता तोतों ने उनकी अच्छी देखभाल की। कुछ हफ्तों के बाद, बच्चे कुछ दूर तक
उड़ने में सक्षम हो गए। मादा तोते ने कहा, “हमने अपने बच्चों की अच्छी देखभाल की है। हमने उन्हें अच्छा
खाना भी दिया है। वे एक साथ खेले हैं। उड़ना सीख गए हैं। अब वे अपना ख्याल रख सकते
हैं। अब हम धीरे-धीरे उन्हें स्वयं निर्णय लेने के लिए छोड़ दें।"
फिर भी हर सुबह माता-पिता
तोते अपने बच्चों के लिए भोजन लाने के लिए बाहर जाते थे। फिर वे शाम को अपने छोटे बच्चों
के लिए भोजन लेकर लौट आते थे । इसी तरह उनका जीवन कुछ समय तक चला।
दो तोते की कहानी
एक दिन एक शिकारी ने इन तोतों
को और बच्चों को देखा। उसे पता चला गया की माता पिता तोते सुबह निकल जाते है। सुबह
माता पिता तोतों के चले जाने के बाद उसने बच्चों को पकड़ने का फैसला किया। योजना के
अनुसार उसने बच्चों को पकड़ा। बच्चों ने खुद को शिकारी के चंगुल से छुड़ाने के लिए
हर संभव कोशिश की। दो बच्चों में से एक शिकारी से बच निकला। दूसरे पक्षी को शिकारी
पिंजरे में बंद करके अपने घर ले गया।
शिकारी ने कहा "मैंने 2 तोतों को
पकड़ा। लेकिन मैंने एक तोता खो दिया।"
शिकारी के बच्चे तोते के साथ
खेलते थे। बहुत जल्द शिकारी के घर का तोता कुछ शब्द बोलना सीख गया। बच्चों ने अपने
पिता से कहा, "पिताजी, हमारा तोता कुछ शब्द
कहना सीख गया है।"
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दूसरा तोता जो उड़ गया था
। यह शिकारी से बच निकला था। यह कुछ समय के लिए उड़ता रहा इधर उधर । फिर यह एक आश्रम
में एक पेड़ पर रहने लगा। आश्रम में कुछ साधु रहते थे। उन्होंने बच्चे तोते को कोई नुकसान
नहीं पहुंचाया। तोता वहीं रहने लगा । तोता उनकी बात सुनता था । और अब ये कुछ शब्द कहना
सीख गया ।
एक यात्री शिकारी की कुटिया
के पास से जा रहा था। वह थका हुआ था। वह झोपड़ी
के पास बैठ गया। उसने तोते को बोलते सुना। तोते ने कहा, "मूर्ख, तुम यहाँ क्यों आए हो? मैं तुम्हारा गला काट दूंगा।"
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ऐसे बुरे शब्द सुनकर यात्री
को बहुत अफ़सोस हुआ। वह फौरन उठा। वह आनन-फानन में वहां से चला गया। फिर वह कुछ देर
चला और आश्रम में पहुँच गया। और एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा तोता आश्रम के के
उसी पेड़ पर बैठा था।
तोता बोला, "स्वागत है, मुसाफिर । इस आश्रम
में आपका स्वागत है। इस जंगल में हमारे पास बहुत सारे अच्छे फल हैं। जो मन करे खाओ।
हम सब लोग तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।"
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यात्री हैरान रह गया। उसने
तोते से कहा। "मैं एक शिकारी की झोपड़ी के पास एक तोते से मिला। वह बुरी तरह से
बोल रहा था । मैं तुरंत वहां से निकल गया। अब मैं तुमसे मिल रहा हूँ। तुम बहुत अच्छा
बोलते हो। आपके शब्द दयालु और कोमल हैं। आप और वो दोनों तोते हैं। फिर आपकी भाषा में
इतना अंतर क्यों है?"
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इस कथन से आश्रम के तोते ने
अनुमान लगाया कि दूसरा तोता कोई और नहीं बल्कि उसका भाई है। आश्रम के तोते ने कहा, “यात्री, दूसरा तोता मेरा भाई
है। लेकिन हम दो अलग-अलग जगहों पर रहे हैं। मेरे भाई ने शिकारी की भाषा सीखी है। लेकिन
मैंने पवित्र लोगों की भाषा सीखी है। यह वह कंपनी है जो आपके शब्दों और कार्यों को
आकार देती है।"